सुप्रीम कोर्ट ने मिशन बना कर भारतीय क्रिकेट प्रबंधन को बदलने का फैसला
किया और आखिरकार उसमें बदलाव के लिए की गई सिफारिशों पर अमल का निर्देश दे
दिया। इसके लिए पहले सर्वोच्च अदालत ने एक रिटायर चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा की
अध्यक्षता में कमेटी बनाई और फिर उसकी सिफारिशों पर सुनवाई करके उसमें से
ज्यादातर सिफारिशों को छह महीने में लागू करने का आदेश दे दिया।
क्रिकेट या खेल प्रशासन से पुराने मठाधीसों के पर कतरना एक बात है और संगठन के बुनियादी चरित्र को बदलना दूसरी बात है। आशा है नए उपायों से क्रिकेट के संचालन में उत्तरदायित्व सुनिश्चित होगा। बीसीसीआई चाहती तो वह पहले ही अपेक्षित सुधारों को लागू कर न्यायिक हस्तक्षेप से बच सकती थी। लेकिन उसने सुधारों को रोकने का प्रयास किया। सुप्रीम कोर्ट ने क्रिकेट मैचों के प्रसारण के समय हर ओवर के बीच विज्ञापन दिखाने पर रोक नहीं लगाई। ऐसे ही कोर्ट ने बोर्ड की सदस्य इकाइयों के बीच राजस्व बंटवारे के मौजूदा तरीके को बदलने का आदेश नहीं दिया। यह होता तो बीसीसीआई के पैसे की ताकत का आधार ही खिसक जाता। उस नाते बीसीसीआई का जलवा और सेहत जस का तस रहना है। सो, अब बड़ा सवाल है कि इन सिफारिशों को लागू कर देने से क्या भारतीय क्रिकेट का प्रबंधन बदल जाएगा? कई राज्यों में नेताओं की बजाय पेशेवरों के हाथ में प्रबंधन की कमान है, लेकिन उससे कोई बड़ा गुणात्मक बदलाव आ गया हो, इसकी मिसाल नहीं है। भारतीय क्रिकेट के कोच बनाए गए अनिल कुंबले खुद भी कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं, लेकिन उनके अध्यक्ष रहते भी कामकाज उसी ढर्रे पर चलता रहा, जिस पर पहले चलता था।
भारत का क्रिकेट बोर्ड दुनिया का सबसे शक्तिशाली और धनी बोर्ड है और इसने भारत में क्रिकेट को कायदे से विकसित किया है। कई बरसों से भारतीय क्रिकेट टीम दुनिया की शीर्ष टीमों में शामिल है। टेस्ट, एकदिवसीय और ट्वेंटी ट्वेंटी मुकाबलों में भारत का रिकार्ड शानदार है। आईपीएल एक सुपरहिट टूर्नामेंट है और राज्यों के स्तर पर क्रिकेट के विकास के लिए बहुत कुछ हो रहा है। सुधारों की सिफारिश लागू होने के बाद इसमें और क्या सुधार होगा, यह देखने वाली बात होगी। एक अच्छी बात यह है कि अदालत ने सीएजी के एक सदस्य को क्रिकेट बोर्ड में शामिल करने की सिफारिश मान ली है। इससे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की हजारों करोड़ रुपए की कमाई और उसकी बंदरबांट पर लगाम लग सकती है। उसके बाद उस कमाई का इस्तेमाल बेहतर ढंग से हो, नई क्रिकेट अकादमी बनें, नए स्टेडियम बनें और नए खिलाड़ियों को प्रमोट करने का काम हो तभी इसका फायदा है। दूसरी अच्छी सिफारिश हर राज्य के लिए एक बोर्ड बनाने और बीसीसीआई में हर राज्य का एक वोट रखने की है। बिहार जैसे राज्य का कोई प्रतिनिधित्व बीसीसीआई में नहीं है, जिसकी वजह से वहां क्रिकेट फीसड्डी है। सुधारों को लागू करने से स्थिति बदलेगी।
बहरहाल, सुधारों को लागू करने के बाद भी क्रिकेट प्रशासन में उन्हीं का जलवा रहेगा, जो अभी कमान में हैं। लेकिन वे ज्यादा सावधानी से अब काम करेंगे। इसके अलावा अदालत ने क्रिकेट में सट्टेबाजी को वैध बनाने का फैसला संसद पर छोड़ा है। यह एक बड़ा मामला है। भारत में क्रिकेट सट्टेबाजी और फिक्सिंग की वजह से बार बार बदनाम हुआ है और इस पर बहुत सख्त कदम उठाने की जरूरत है। सट्टेबाजी की वजह से ही मैच फिक्स होते हैं, इसलिए इन दोनों पर एक साथ विचार करने की जरूरत है। अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें @ http://goo.gl/vC1jWP
क्रिकेट या खेल प्रशासन से पुराने मठाधीसों के पर कतरना एक बात है और संगठन के बुनियादी चरित्र को बदलना दूसरी बात है। आशा है नए उपायों से क्रिकेट के संचालन में उत्तरदायित्व सुनिश्चित होगा। बीसीसीआई चाहती तो वह पहले ही अपेक्षित सुधारों को लागू कर न्यायिक हस्तक्षेप से बच सकती थी। लेकिन उसने सुधारों को रोकने का प्रयास किया। सुप्रीम कोर्ट ने क्रिकेट मैचों के प्रसारण के समय हर ओवर के बीच विज्ञापन दिखाने पर रोक नहीं लगाई। ऐसे ही कोर्ट ने बोर्ड की सदस्य इकाइयों के बीच राजस्व बंटवारे के मौजूदा तरीके को बदलने का आदेश नहीं दिया। यह होता तो बीसीसीआई के पैसे की ताकत का आधार ही खिसक जाता। उस नाते बीसीसीआई का जलवा और सेहत जस का तस रहना है। सो, अब बड़ा सवाल है कि इन सिफारिशों को लागू कर देने से क्या भारतीय क्रिकेट का प्रबंधन बदल जाएगा? कई राज्यों में नेताओं की बजाय पेशेवरों के हाथ में प्रबंधन की कमान है, लेकिन उससे कोई बड़ा गुणात्मक बदलाव आ गया हो, इसकी मिसाल नहीं है। भारतीय क्रिकेट के कोच बनाए गए अनिल कुंबले खुद भी कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं, लेकिन उनके अध्यक्ष रहते भी कामकाज उसी ढर्रे पर चलता रहा, जिस पर पहले चलता था।
भारत का क्रिकेट बोर्ड दुनिया का सबसे शक्तिशाली और धनी बोर्ड है और इसने भारत में क्रिकेट को कायदे से विकसित किया है। कई बरसों से भारतीय क्रिकेट टीम दुनिया की शीर्ष टीमों में शामिल है। टेस्ट, एकदिवसीय और ट्वेंटी ट्वेंटी मुकाबलों में भारत का रिकार्ड शानदार है। आईपीएल एक सुपरहिट टूर्नामेंट है और राज्यों के स्तर पर क्रिकेट के विकास के लिए बहुत कुछ हो रहा है। सुधारों की सिफारिश लागू होने के बाद इसमें और क्या सुधार होगा, यह देखने वाली बात होगी। एक अच्छी बात यह है कि अदालत ने सीएजी के एक सदस्य को क्रिकेट बोर्ड में शामिल करने की सिफारिश मान ली है। इससे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की हजारों करोड़ रुपए की कमाई और उसकी बंदरबांट पर लगाम लग सकती है। उसके बाद उस कमाई का इस्तेमाल बेहतर ढंग से हो, नई क्रिकेट अकादमी बनें, नए स्टेडियम बनें और नए खिलाड़ियों को प्रमोट करने का काम हो तभी इसका फायदा है। दूसरी अच्छी सिफारिश हर राज्य के लिए एक बोर्ड बनाने और बीसीसीआई में हर राज्य का एक वोट रखने की है। बिहार जैसे राज्य का कोई प्रतिनिधित्व बीसीसीआई में नहीं है, जिसकी वजह से वहां क्रिकेट फीसड्डी है। सुधारों को लागू करने से स्थिति बदलेगी।
बहरहाल, सुधारों को लागू करने के बाद भी क्रिकेट प्रशासन में उन्हीं का जलवा रहेगा, जो अभी कमान में हैं। लेकिन वे ज्यादा सावधानी से अब काम करेंगे। इसके अलावा अदालत ने क्रिकेट में सट्टेबाजी को वैध बनाने का फैसला संसद पर छोड़ा है। यह एक बड़ा मामला है। भारत में क्रिकेट सट्टेबाजी और फिक्सिंग की वजह से बार बार बदनाम हुआ है और इस पर बहुत सख्त कदम उठाने की जरूरत है। सट्टेबाजी की वजह से ही मैच फिक्स होते हैं, इसलिए इन दोनों पर एक साथ विचार करने की जरूरत है। अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें @ http://goo.gl/vC1jWP
No comments:
Post a Comment